. ।। दोहे ।।
चार पहर का दिन भए ,चार पहर की रात ।
काम हेतु दिन नियत है , विश्राम खातिर रात । (1)
सच-झूठ के रण में नित , दो तुम सच का साथ ।
जो सच का थामे हाथ , हरि भी उनके साथ । (2)
न कभी भी आवेश में , लीजिए तुम निर्णय ।
क्रोध को अग्नि मानिए ,जलत इसमें परिणय । (3)
खाली बैठे न रहिये , करिये कुछ भी काम ।
जो खाली समय काटे , वो होवत बदनाम । (4)
काम न होत दीर्घ-लघु ,सब काम एक समान ।
जो काम में भेद करत , न होवत वो महान । (5)
जो करत मेहनत सदा ,न होवे वो गरीब ।
जो श्रम से जी चुराये , फुटत उनके नसीब । (6)
घूमे समय का पहिया ,अनवरत एक समान ।
तुम भी सीखो समय से ,रहना नित गतिमान । (7)
समय सदा गतिशील है , समय ना एक समान ।
जब समय करवट लेवे , भक्त हुए भगवान । (8)
मित्र मानिये किताब को , कभी न छोड़े साथ ।
गुरू जैसे किताब है , दिखावत मुक्ति - पाथ । (9)
समय न अपना खोइए , समय हीरा समान ।
जो समय को खोवत है , घटती उनकी शान । (10)
दिलीप कुमार
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