Sunday, 23 August 2020

ग़ज़ल

              हार के मारे

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बाहर सूरज है, चाँद है, तारे बहुत हैं,

पर भीतर में हमारे अँधियारे बहुत है।


कोई कोई ही नजर आता है सिकन्दर,

दरअसल जहाँ में हार के मारे बहुत हैं।


भला क्यों जाते हो दूर-दूर करने सैर,

देख तो जरा आसपास नजारें बहुत हैं।


मुसीबत में ही पता लगता है अपनों का,

ख़ैरियत में लगते अपने सारे बहुत हैं।


किसी किसी की चौखट में मिलती है इज़्ज़त,

हालांकि  खुले रखते सभी द्वारें बहुत हैं।



                       - दिलीप कुमार 


Friday, 21 August 2020

गज़ल

        गज़ल

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विचारों को उदार कर तू इसे न तंग कर,

आजाद कर ख़याल को तू इसे न बंद कर।


बड़ी रंगत है जग में  इसे यूँ रहने दो,

तू भी रंग इसमें भर इसे न बेरंग कर।


लगती भली दुनियाँ है प्यार और इश्क में,

सबसे प्यार तू भी कर बेवजह न जंग कर।


पड़ती यहाँ देनी बलि अमन की रक्षा में,

तू भी इसे अभेद रख  इसे यूँ न भंग कर।


गर शूल है दुनियाँ में तो साथ में गुल भी,

गठजोड़ कर गुल से तुम शूल से न संग कर। 

               

कारनामे करने में  लोग बड़े लीन हैं,

कमाल यहाँ तू भी कर फिर जग को दंग कर।


                          -  दिलीप कुमार

Two Ideas

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