हार के मारे
__________________
बाहर सूरज है, चाँद है, तारे बहुत हैं,
पर भीतर में हमारे अँधियारे बहुत है।
कोई कोई ही नजर आता है सिकन्दर,
दरअसल जहाँ में हार के मारे बहुत हैं।
भला क्यों जाते हो दूर-दूर करने सैर,
देख तो जरा आसपास नजारें बहुत हैं।
मुसीबत में ही पता लगता है अपनों का,
ख़ैरियत में लगते अपने सारे बहुत हैं।
किसी किसी की चौखट में मिलती है इज़्ज़त,
हालांकि खुले रखते सभी द्वारें बहुत हैं।
- दिलीप कुमार