Thursday, 23 September 2021

Two Ideas

 #Haiku_Poem


Two Ideas

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A positive point

Puts you in a positive

Frame of mind to live.


A negative notion

Fills your mind with frustration

To force you to die.


So always attempt

To have a positive frame

Of mind to fly up.


So never allow

The wind of negative notion

To cause your down fall.


Success and failure,

Thus, come with the ideas

You always go with.


 - Dilip Kumar

यूँ कब तलक गिरती रहेंगी लाशें

 यूँ कब तलक गिरती रहेंगी लाशें,

यूँ कब तलक थमती रहेंगी सांसें।


जन्म-मृत्यु का खेल सदा ही देखा,

पर ना देखे यूँ भयावह तमाशे।


सब वाकिफ इस खेल के अंजाम से,

तभी सम्हलकर चल रहे हैं पासे।


कुछ नासमझ तो अभी भी ऐसे हैं, 

जो बजा रहे हैं जड़ता के ताशे।


मर्ज़ तो बहुत समझदार है लगता,

जो रूप बदलकर दे रहे है झांसे।


- दिलीप कुमार

Sunday, 6 June 2021

Poem - Life: A Race

 Life: A Race

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Life is like a long race course

Where you have to run with force,

Else you'll lose out or be late

Which will throw you out of date.


You will see some stumbling blocks

On the way as throns and rocks

Which will try to hold you back

If you aren't wary of the track.


You will go through up and down

While battling for the bright crown.

If you hold your nerve and fleet,

Triumph will then touch your feet.


Many milestones you will meet

If you power your hand and feet

And let them stay safe and sound

While running along the ground.


When you start running a race,

Run with all passion and pace

So that you may win the race

And medals you may embrace.


                             - Dilip Kumar

Wednesday, 14 October 2020

मेरा मुल्क - मेरा देश

मेरा मुल्क-मेरा देश (ग़ज़ल)

मेरा मुल्क मेरा देश, तुझको सलाम करता हूँ,

तन मन सब कुछ मैं अपना, तुम्हारे नाम करता हूँ।


तू ही मेरा ईश्वर है, मेरे लिए तू है ख़ुदा,

ख़ुदा-ईश्वर मान तुझे, तुझको प्रणाम करता हूँ।


तेरी यादों में अब मैं, सोता और जागता हूँ,

तुझको याद मैं दिन-रात, व आठों याम करता हूँ।


हर लम्हा तुझको समर्पित, हर पल बस अब तेरा है,

तुझको अर्पित हर सुबहें, और हर शाम करता हूँ।


तेरी सेवा और भक्ति, में रत अब तो रहता हूँ,

इसके अलावा न तो मैं, कुछ और काम करता हूँ।


                                   दिलीप कुमार

Tuesday, 6 October 2020

गांधीवाद की प्रासंगिकता व उपयोगिता

 गांधीवाद की प्रासंगिकता व उपयोगिता

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‘आने वाली नस्लें शायद ही विश्वास करें कि हाड़-मांस से बना कोई ऐसा शख्स धरती पर था।’ अल्बर्ट आइंस्टीन का यह कथन उस शख्स के बारे में है, जिसे हम महात्मा गांधी कहते हैं। जिन्होंने 19वीं सदी में जन्म लिया; 20 वीं में जनमानस को प्रभावित किया; और 21वीं सदी में जिसकी जरूरत सबसे ज़्यादा महसूस की जा रही है।

आज भारत सहित पूरा विश्व अनेकों संकट से गुजर रहा है। चाहे वर्तमान में कोरोना महामारी का संकट हो; या चाहे जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, वैश्विक आतंकवाद का हो; या नव साम्राज्यवाद, धार्मिक कट्टरता, जातीय हिंसा का हो; या फिर नस्लीय भेदभाव हो, साम्प्रदायिकता अथवा छद्म राष्ट्रवाद का ही क्यों न हो।

उपरोक्त समस्याओं की जड़ें कहीं न कहीं पूंजीवाद में निहित हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूंजीवाद के विरोध में साम्यवाद उभर कर आया था। फलस्वरूप दुनिया दो धड़ों में बट गई - पहला धड़ा संयुक्त राज्य अमेरिका का था, जो पूंजीवाद का समर्थक था, तो दूसरा खेमा सोवियत संघ का था, जो साम्यवाद के पैरोकार थे। दुनिया पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए पूंजीवाद व साम्यवाद के बीच चले इसी संघर्ष को, जो 1947 से 1991 तक चला, इतिहास एवं राजनीति विज्ञान में शीत युद्ध के रूप में हम पढ़ते हैं।

भारत द्वारा दोनों गुटों से समान दूरी बनाते हुए अपनी सम्प्रभुता व स्वतंत्रता को बिना गिरवी रखे, सही का साथ देने व गलत का विरोध करने वाले 'गुट निरपेक्षता' की नीति को अपनाना भी एक गांधीवादी ही तरीका था। हालांकि, इसमें नेहरू की भूमिका को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं

1991 में सोवियत संघ के विखंडन के बाद साम्यवाद को गहरा धक्का लगा। आज दुनिया में चीन, उत्तर कोरिया, क्यूबा, लाओस और वियतनाम जैसे गिने-चुने देश ही, साम्यवादी व्यवस्था को अपनाए हुए हैं। दुनिया का सबसे बड़ा साम्यवादी मुल्क चीन भी आज राज्य नियंत्रित पूंजीवाद की ओर बढ़ चुका है। 

इस प्रकार एडम स्मिथ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत, पूंजीवाद को सभी देश एक आदर्श व्यवस्था के रूप में अपना चुके हैं। किंतु वर्तमान की अधिकांश समस्याएं पूंजीवाद के फल के रूप में हमारे सामने हैं जिनका स्वाद विषैला व मानवता के लिए खतरनाक हैं।

ऐसे में पूंजीवाद की इन बुराइयों से छुटकारा दिलाने के लिए क्या हमारे पास कोई और विचार धारा या विकल्प है, जबकि साम्यवाद पहले ही ढलान पर है और इसके पुनः खड़े होने की सम्भावना कहीं नहीं दिखती है।

तो क्या, कोई और विचार धारा इस धरती पर है जिससे पूंजीवाद से जन्मे इन समस्याओं को दूर किया जा सके।मेरे विचार से गांधीवाद एक आदर्श विकल्प प्रस्तुत करता है पूंजीवाद के बरअक़्स।

हालांकि, भारत में ही गांधी जी की आर्थिक नीतियों को लागू करने की हिम्मत किसी भी सरकार में नहीं रही है। गांधी जी का मानना था कि भारत का हृदय गाँवों में बसता है। वह गाँवों को सशक्त करना चाहते थे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर गाँवों को आत्म निर्भर बनाना चाहते थे। गांधी जी लघु व कुटीर उद्योग को बड़े उद्योगों के ऊपर प्राथमिकता देते थे। किंतु नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक किसी भी सरकारों ने गांधी द्वारा बताए आर्थिक नीतियों को नही अपनाया। हालांकि, बीच- बीच में ग्रामीण विकास के लिए कुछ अच्छे कार्यक्रम जरूर बनते रहे हैं, जिनमें 2005 में पारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम, 'मनरेगा' प्रमुख है

गांधीवादी विचारधारा की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि यह 'सतत विकास' व 'सम्हलकर विकास' करने की बात करती है। जबकि पूंजीवाद में अंधाधुंध विकास को लक्ष्य माना जाता है ; जिसमें लाभ कमाने व पूंजी निर्माण पर जोर दिया जाता है; और जिसका सबसे ज्यादा लाभ पूंजीपतियों तथा समाज के उच्च वर्ग को तो मिलता है। परन्तु इस लाभ कमाने की प्रक्रिया में पर्यावरण और श्रमिक वर्ग या गरीब तबके को इससे होने वाले नुकसान या दुष्प्रभाव को झेलना पड़ता है। 'भोपाल गैस कांड' इसका एक उदाहरण है।

आज अनवीकरणीय खनिज व ऊर्जा संसाधन के ख़त्म हो जाने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियों का अस्तित्व संकटग्रस्त दिखाई पड़ता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ भी आज सतत विकास की बात करता है, और इसके लिए 17 बिंदुओं वाले 'सतत विकास लक्ष्यों'(एस. डी. जी.) को निर्धारित किया है जिन्हें सभी राष्ट्रों को 2030 तक पूरा करना है।

सतत विकास, वास्तव में एक ऐसा विकास है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिए भी संसाधनों को सम्हाल रखने की बात करता है। गांधी जी भी ऐसे ही विकास का मॉडल के हिमायती थे।

आज जब दुनिया के सभी देश हर साल 'जलवायु परिवर्तन' या यूँ कहें 'जलवायु संकट' पर अलग-अलग जगहों पर हर वर्ष आपस में चर्चा करते हैं, किंतु किसी भी देश में नैतिक जिम्मेदारी दिखाने की हिम्मत नहीं होती कि वे अपने कार्बन उत्सर्जन को दमदारी के साथ कम सके।

 गांधीवादी विचार धारा में नैतिकता की अपनी खास जगह है। नैतिकता वह गुण है जो आपको स्वार्थी होने व पथ भ्रष्ट होने से बचाती है। नैतिकता विहीन समाज की वजह से आज समाज में भ्रष्टाचार, दुराचार, कदाचार की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे समाज पतन की ओर अग्रसर हो रहा है। 

आए दिन निर्भया कांड की पुनरावृत्ति होती रहती है। वर्तमान में हाथरस की घटना ने हमें निर्भया कांड की याद फिर से दिला दी है। यू.एन. विमेन की रिपोर्ट को माने तो विश्व भर में तकरीबन 35 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन काल में शारिरिक या यौन शोषण का शिकार होती है। वहीं भारत में हर सोलह मिनट में एक महिला रेप का शिकार हो जाती है; और हर घण्टे में एक महिला दहेज उत्पीड़न से मौत का शिकार हो जाती है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन. सी. आर. बी.) के अनुसार।

आए दिन देश में धर्म के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकी जाती हैं। आजकल धर्म का प्रयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, किंतु गांधी जी धर्म का उपयोग राजनीति को शुद्ध व निष्कपट बनाने के लिए करना चाहते थे। नैतिकता विहीन राजनीति ने समाज में अनेकों बुराइयों को जन्म दिया है। यही वजह है कि हमारे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ़ अनेकों आपराधिक मामले लंबित हैं। ए. डी. आर (असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म) की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान लोकसभा (2019) के 540 सदस्यों में से 234  सदस्यों के खिलाफ़ आपराधिक मामलें दर्ज हैं वहीं 159 के अनुसार गम्भीर किस्म के आपराधिक मामलें लम्बित हैं।  कारण सिर्फ एक यह है कि ये गांधीवाद को नहीं मानते हैं,  हालांकि खादी के कपड़े जरूर पहनते हैं।

आज देश व दुनिया में अमीरी गरीबी के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं व गरीब और गरीब। 'ऑक्सफैम रिपोर्ट 2020' के अनुसार, विश्व के 2153 अरबपतियों की पूंजी विश्व के 60 प्रतिशत आबादी (4.6 अरब लोग) की सकल पूंजी से ज्यादा है। वहीं भारत में भी ये असमानता कहीं ज्यादा प्रतीत होती है।  'टाइम टू केयर' नाम से प्रकाशित इसी रिपोर्ट में भारत के 1 प्रतिशत सबसे अमीर पूंजीपतियों की सम्पति, भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या (95.3 करोड़ लोग) की सकल सम्पति से चार गुना ज्यादा है।

संसार भर में बढ़ती इस आर्थिक विषमता का मुख्य कारण पूंजीवादी विचारधारा से प्रेरित विकास का मॉडल है। जबकि गांधीवादी मॉडल में अमीरों को सम्पति के ट्रस्टी के रूप में माना गया है, जिसके अंतर्गत उन्हें अपनी सम्पति को गरीबों के कल्याण में लगाने की बात कही गई है। 

अभी कुछ दिन पहले तक अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में नस्लीय भेदभाव की खबर सुनाई दे रही थी। जो 21वीं सदी में भी लोगों के मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है। भारत में भी हालांकि अस्पृश्यता अब संवैधानिक रूप से प्रतिबंधित है; किंतु समय-समय पर दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों व महिलाओं पर अत्याचार की खबरें आती रहती हैं, जिससे 21 वी सदी में समाज की सोच पर सवाल जरूर उठता है। जबकि गांधीवाद नस्लीय भेदभाव सहित सभी प्रकार के  ऊंच-नीच को उचित नही मानता है। इसीलिए स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व को बढ़ाने वाले  प्रावधान संविधान में किये गये हैं।

अपने-अपने देश से नस्लीय भेदभाव या रंग भेद को खत्म करने में नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका) व मार्टिन लूथर किंग जूनियर (अमेरिका) ने गांधीवादी नीतियों का ही अनुसरण किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि आज रंगभेद की नीति समाप्त हो चुकी है। आंग सांग सू की ने गांधीवादी तरीके से म्यांमार को सैनिक तानाशाही से आजाद कराया था और वहाँ लोकतंत्र की बहाली में अपना योगदान दिया था । इन तीनों नायकों ने गांधीवादी तरीके से काम किया और इन तीनों को इसके लिए नोबेल पुरस्कार भी हासिल हुए। इस प्रकार गांधीवाद से विश्व के अनेक भागों में समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व की स्थापना में मदद मिली है।

वर्तमान में भारत की तरफ़ से बौद्ध धर्म के बाद, गाँधी ने ही विश्व को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। मजेदार बात यह है कि दोनों, बौद्ध धर्म व गाँधी ने दुनिया में शांति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण पूर्ण भूमिका निभाई हैं। भारत भी इन्हीं के बताए मार्ग पर चल रहा है। भारत यू.एन. के शांति अभियानों के लिए हमेशा से अपने जाबांज़ सैनिक भेजते रहे है।

आतंकवाद एक ऐसा मुद्दा है जो धार्मिक संकीर्णता से प्रेरित है तथा हिंसा को बढ़ावा देता है। गांधीवादी तरीके से इसे निपटा जा सकता है। गांधीवाद में धार्मिक सहिष्णुता की बात की जाती है अर्थात गांधीवादी व्यक्ति धर्म आधारित भेदभाव करेगा ही नहीं तो धार्मिक कट्टरता या धर्मान्धता कहाँ से आएगी।

जहां तक भारत में हिन्दू- मुस्लिम वैमनस्यता की बात है, तो यह गाहे- बगाहे उभर कर आते रहते है जिससे हमें सावधान रहने की जरूरत है। यह खासकर चुनावों के समय अचानक सतह पर आ जाते है और फिर चुनावों के बाद गायब हो जाते है। दिलचस्प बात यह कि आजकल राज्यों के चुनाव भी इससे प्रभावित होने लगा है। चूंकि हमारे देश में साल में कम से कम दो या तीन राज्यों के चुनाव प्रति वर्ष होते हैं, जिससे यह धार्मिक कट्टरता या साम्प्रदायिकता हर वर्ष कमोवेश कुछ समय के लिए जरूर दिखाई देता है। 1984 का 'सिक्ख विरोधी दंगा', 2002 का 'गोधरा कांड' धार्मिक वैमनस्यता के कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो हमें दुनिया की नजरों में शर्मसार करते हैं। साथ ही साथ ये देश की एकता व अखंडता के लिए खतरा पैदा करते हैं।।

गांधी जी इस खतरे को अच्छी तरह से समझते थे इसीलिए  वह जीवन भर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए लड़ते रहे; और अंततः उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी भी पड़ी। जब देश स्वतंत्रता का जश्न मना रहा था तो गांधी जी हिंसा पीड़ित क्षेत्र नोआखली (वर्तमान में बांग्लादेश में एक जगह) में अनशन कर, साम्प्रदायिक हिंसा से उठती लपटों को शांत कर रहे थे।

गांधी जी सत्य के साधक थे । उन्होंने अपने सत्याग्रह के लिए सत्य व अहिंसा को ही साधन बनाया। और इन्हीं साधनों की बदौलत अंग्रेजों के खिलाफ़ आंदोलन चलाया। परिणाम स्वरूप अंग्रेजों को देश छोड़ना पड़ा।

स. रा. सं. द्वारा 2007 से गांधी जयंती को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस ' के रूप में मनाया जाना गांधी और उनके विचारों की प्रासंगिकता व लोकप्रियता का ही सूचक है।

आज बढ़ती समृद्धि के बावजूद लोगों द्वारा शांति की कमी महसूस की जा रही है, ऐसे में गांधीवाद लोगों को आध्यात्मिकता की तरफ ले जाने वाला एक अच्छा रास्ता हो सकता है। हममें से अधिकांश लोग वर्तमान से क्षुब्ध रहते हैं और हम अपने हिसाब से बदलाव लाना चाहते हैं किंतु हम तय नहीं कर पाते कि बदलाव क्या हो, तो इसके लिए गांधी यह का कथन मार्गदर्शक का काम करता है, "वही बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।"

इस प्रकार हम ये कह सकते हैं कि गांधीवाद 21वीं शताब्दी की, अगर सभी नहीं तो, अधिकांश समस्याओं का हल प्रस्तुत करता है। चाहे वह समस्या एक व्यक्ति, एक समाज, एक राष्ट्र, या पूरी दुनिया की ही क्यों न हों।

"मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है" गांधी का यह कथन हमें उनके जीवन की घटनाओं, उनके विचारों, जीवन दर्शन व उनकी उपलब्धियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।


                                                         दिलीप कुमार


Monday, 21 September 2020

ग़ज़ल

 समझदार होकर तुम क्यों सवाल करते हो,

बेवजह ,बेबुनियाद क्यों बवाल करते हो।


जैसे चलते आया है वैसे चलने दो,

हमें रोकने खड़ी क्यों दीवाल करते हो।


बोलने वालों का हश्र तुम्हें पता ही है, 

फिर भी बोलकर अपना क्यों काल करते हो।


तुम भी चुपचाप अपना काम करते रहिए, 

यूँ ही हमारे आगे क्यों गाल करते हो। 


हालात ठीक ठाक है बनिस्बत पहले के, 

इसे खराब करने का क्यों ख़्याल करते हो।                 


बोलना ठीक नहीं विरोध में जानते हो,

फिर बोलकर खून में क्यों उबाल करते हो,


सब मौन नतमस्तक हो सजदा कर रहें हैं, 

तो तुम पूछकर ऊँचा क्यों भाल करते हो।


                           -  दिलीप कुमार

Friday, 4 September 2020

चौपाई

 

                            । । चौपाई ।।


                                  वंदना

                                 ______


सुनो प्रभु तुम विनती हमारी । हाथ जोड़ करूँ जय तुम्हारी ।।

काम,क्रोध ,मद ,लोभ अपारा । दूर करो ये दोष हमारा ।।


मालिक तुम हम दास तुम्हारा । तुम करते सबका उद्धारा ।।

हमरो करहू तुम उद्धारा ।     सविनय है बस यही हमारा ।।


हम निर्बल हैं तुम बलवाना ।  तुमसे होत जगत कल्याना ।।

हमरो करहू तुम कल्याना ।   अर्ज एक है देहुँ तुम ध्याना ।।


हममें है सब दुर्गुण भारी ।   एक तुम्ही हो बस सदाचारी ।।

दूर करो सब दोष बिहारी ।।  अरदास ये तुमसे हमारी ।।


तुम दीप हो जगत अँधियारा ।  तुमसे जग में है उजियारा ।।

हमें भी तुम ज्योति दो साईं ।   सबकी तुमसे यही दुहाई ।।


तुम रहते प्रसन्न हर बारा ।   बाकी जगत सदा दुखियारा ।।

दूर करो सबकी बदहाली ।   यही मांग रहे  हम कपाली ।।


भक्ति भाव ना जाने कोई ।   पूजा पाठ न हमसे होई ।।

हमें सद्गुण तुम देहुँ कोई ।   अर्चना करें ये सब कोई ।।


क्षमा करो सब पाप हमारे ।  शरण में हैं अब हम तुम्हारे ।।

सदगति हमें दे धनुर्धारी ।   यह प्रार्थना है अब हमारी।।


                                   

                                                दिलीप कुमार


Two Ideas

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