सत्कर्म कर हर पल
कुसंगति में ना पड़िए , करिए तुम सत्संग ।
शांति मिले सत्संग से , कुसंग जनते जंग ।
शांत रखिए मन को तुम , अशांत न करिए मन ।
जन्मे क्रोध अशांति से , जो फुँके तन मन धन ।
सच के साथ सदा चलो , कठिन हो भले डगर ।
सत्य को छोड़ तुम यहाँ , ना देख इधर - उधर ।
गर पग चले नित सत पथ , और सच बोले मुख ।
हस्त करे सत्कर्म सब , तो मिले शास्वत सुख ।
जो मिला तुमको अब तक , वो तेरे कर्म फल ।
गर फल अच्छा चाहिए , सत्कर्म कर हर पल ।
बिना किसी कारण यहाँ , न होत कुछ भी काज ।
एक भोगे वन कर्म से , तो एक भोगे राज ।
ज्यों रंग गिरगिट बदले , वैसे बदले काल ।
समय करे निर्धन धनी , व रंक मालामाल ।
समय निकले जाय यहाँ , जैसे कर से रेत ।
सचेत यहाँ समय करे , चेत सके तो चेत ।
गुजरा समय न लौटता , इतना लो तुम मान ।
जो न गँवाता समय को , सफल उसी को जान ।
वही कर तुम नित्य यहाँ , कहे जो तेरा दिल ।
दिल की सदा सदा सुनो , कुछ भी कहे महफ़िल ।
दिलीप कुमार
bahut sundar bat kahi apne , hame hamesha satkarm karte rahna chahiye.
ReplyDeleteThank you for appreciation .🙏
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