Thursday, 9 April 2020

दोहे - सत्कर्म कर हल पल


      सत्कर्म कर हर पल                                                      

कुसंगति में ना पड़िए , करिए तुम सत्संग ।
शांति मिले सत्संग से , कुसंग जनते जंग ।

शांत रखिए मन को तुम , अशांत न करिए मन ।
जन्मे क्रोध अशांति से , जो फुँके तन मन धन ।

सच के साथ सदा चलो , कठिन हो भले डगर ।
सत्य को छोड़ तुम यहाँ , ना देख इधर - उधर  ।

गर पग चले नित सत पथ , और सच बोले मुख ।
हस्त  करे सत्कर्म सब , तो मिले शास्वत सुख ।

जो मिला तुमको अब तक , वो तेरे कर्म फल ।
गर फल अच्छा चाहिए , सत्कर्म कर हर पल ।

बिना किसी कारण यहाँ , न होत कुछ भी काज ।
एक भोगे वन कर्म से  ,  तो  एक भोगे  राज ।

ज्यों रंग गिरगिट बदले  , वैसे बदले काल ।
समय करे निर्धन धनी  ,  व रंक मालामाल  ।

समय निकले जाय यहाँ  , जैसे कर से रेत ।
सचेत यहाँ समय करे  , चेत सके तो चेत ।

गुजरा समय न लौटता , इतना लो तुम मान ।
जो न गँवाता समय को , सफल उसी को जान ।

वही कर तुम नित्य यहाँ , कहे जो तेरा दिल ।
दिल की सदा सदा सुनो , कुछ भी कहे महफ़िल ।


                         ‌            दिलीप कुमार

2 comments:

  1. bahut sundar bat kahi apne , hame hamesha satkarm karte rahna chahiye.

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