Friday, 1 May 2020

दोहा - श्रम का कर संकल्प

            श्रम का कर संकल्प
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अगर तुमको जीत मिले , तो उड़ो न स्वच्छन्द।
कभी न करना हार से , प्रयास अपना बन्द ।

अगर तुमको  हार मिले, तो हो न तुम उदास ।
जीत होती तभी यहाँ , जब होत नित प्रयास ।

इच्छा कम ही राखिए , अगर पाना है सुख ।
अपूरित अरमानों से , मिले असहनीय दुख  ।

अगर सफलता चाहिए , श्रम का कर संकल्प ।
श्रम है  कुंजी एकमात्र , दूजा नहीं  विकल्प ।

लालच को न जीताना  , सन्तोष की दे बलि ।
जो लालच से जीतते  , वे ही असली बली ।

राही गर भटके मिले ,  व पूछत फिरे राह ।
मार्ग सही दिखाकर तुम ,  आशीष ले अथाह ।

गर शांति तुम्हें चाहिए , तो दर-दर ना भटक ।
शांति  तेरे  घट में  है , भला देख जा निकट । 

एक ही लक्ष्य रखने की , कभी न करना भूल ।
विकल्प गर साथ हो तो ,जरूर खिले जय-गुल       
               
अगर मन में  हो संशय  , व कर न सको निश्चय ।
अंतरमन सुन लीजिए   , अपने सभी  निर्णय ।

जो सुनते खुद की सदा  , हो न उन्हें अनुताप ।
जो  सुनते पर की सदा ,  होत उन्हें सन्ताप ।


                                      दिलीप कुमार


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