Wednesday, 14 October 2020

मेरा मुल्क - मेरा देश

मेरा मुल्क-मेरा देश (ग़ज़ल)

मेरा मुल्क मेरा देश, तुझको सलाम करता हूँ,

तन मन सब कुछ मैं अपना, तुम्हारे नाम करता हूँ।


तू ही मेरा ईश्वर है, मेरे लिए तू है ख़ुदा,

ख़ुदा-ईश्वर मान तुझे, तुझको प्रणाम करता हूँ।


तेरी यादों में अब मैं, सोता और जागता हूँ,

तुझको याद मैं दिन-रात, व आठों याम करता हूँ।


हर लम्हा तुझको समर्पित, हर पल बस अब तेरा है,

तुझको अर्पित हर सुबहें, और हर शाम करता हूँ।


तेरी सेवा और भक्ति, में रत अब तो रहता हूँ,

इसके अलावा न तो मैं, कुछ और काम करता हूँ।


                                   दिलीप कुमार

Tuesday, 6 October 2020

गांधीवाद की प्रासंगिकता व उपयोगिता

 गांधीवाद की प्रासंगिकता व उपयोगिता

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‘आने वाली नस्लें शायद ही विश्वास करें कि हाड़-मांस से बना कोई ऐसा शख्स धरती पर था।’ अल्बर्ट आइंस्टीन का यह कथन उस शख्स के बारे में है, जिसे हम महात्मा गांधी कहते हैं। जिन्होंने 19वीं सदी में जन्म लिया; 20 वीं में जनमानस को प्रभावित किया; और 21वीं सदी में जिसकी जरूरत सबसे ज़्यादा महसूस की जा रही है।

आज भारत सहित पूरा विश्व अनेकों संकट से गुजर रहा है। चाहे वर्तमान में कोरोना महामारी का संकट हो; या चाहे जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, वैश्विक आतंकवाद का हो; या नव साम्राज्यवाद, धार्मिक कट्टरता, जातीय हिंसा का हो; या फिर नस्लीय भेदभाव हो, साम्प्रदायिकता अथवा छद्म राष्ट्रवाद का ही क्यों न हो।

उपरोक्त समस्याओं की जड़ें कहीं न कहीं पूंजीवाद में निहित हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूंजीवाद के विरोध में साम्यवाद उभर कर आया था। फलस्वरूप दुनिया दो धड़ों में बट गई - पहला धड़ा संयुक्त राज्य अमेरिका का था, जो पूंजीवाद का समर्थक था, तो दूसरा खेमा सोवियत संघ का था, जो साम्यवाद के पैरोकार थे। दुनिया पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए पूंजीवाद व साम्यवाद के बीच चले इसी संघर्ष को, जो 1947 से 1991 तक चला, इतिहास एवं राजनीति विज्ञान में शीत युद्ध के रूप में हम पढ़ते हैं।

भारत द्वारा दोनों गुटों से समान दूरी बनाते हुए अपनी सम्प्रभुता व स्वतंत्रता को बिना गिरवी रखे, सही का साथ देने व गलत का विरोध करने वाले 'गुट निरपेक्षता' की नीति को अपनाना भी एक गांधीवादी ही तरीका था। हालांकि, इसमें नेहरू की भूमिका को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं

1991 में सोवियत संघ के विखंडन के बाद साम्यवाद को गहरा धक्का लगा। आज दुनिया में चीन, उत्तर कोरिया, क्यूबा, लाओस और वियतनाम जैसे गिने-चुने देश ही, साम्यवादी व्यवस्था को अपनाए हुए हैं। दुनिया का सबसे बड़ा साम्यवादी मुल्क चीन भी आज राज्य नियंत्रित पूंजीवाद की ओर बढ़ चुका है। 

इस प्रकार एडम स्मिथ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत, पूंजीवाद को सभी देश एक आदर्श व्यवस्था के रूप में अपना चुके हैं। किंतु वर्तमान की अधिकांश समस्याएं पूंजीवाद के फल के रूप में हमारे सामने हैं जिनका स्वाद विषैला व मानवता के लिए खतरनाक हैं।

ऐसे में पूंजीवाद की इन बुराइयों से छुटकारा दिलाने के लिए क्या हमारे पास कोई और विचार धारा या विकल्प है, जबकि साम्यवाद पहले ही ढलान पर है और इसके पुनः खड़े होने की सम्भावना कहीं नहीं दिखती है।

तो क्या, कोई और विचार धारा इस धरती पर है जिससे पूंजीवाद से जन्मे इन समस्याओं को दूर किया जा सके।मेरे विचार से गांधीवाद एक आदर्श विकल्प प्रस्तुत करता है पूंजीवाद के बरअक़्स।

हालांकि, भारत में ही गांधी जी की आर्थिक नीतियों को लागू करने की हिम्मत किसी भी सरकार में नहीं रही है। गांधी जी का मानना था कि भारत का हृदय गाँवों में बसता है। वह गाँवों को सशक्त करना चाहते थे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर गाँवों को आत्म निर्भर बनाना चाहते थे। गांधी जी लघु व कुटीर उद्योग को बड़े उद्योगों के ऊपर प्राथमिकता देते थे। किंतु नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक किसी भी सरकारों ने गांधी द्वारा बताए आर्थिक नीतियों को नही अपनाया। हालांकि, बीच- बीच में ग्रामीण विकास के लिए कुछ अच्छे कार्यक्रम जरूर बनते रहे हैं, जिनमें 2005 में पारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम, 'मनरेगा' प्रमुख है

गांधीवादी विचारधारा की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि यह 'सतत विकास' व 'सम्हलकर विकास' करने की बात करती है। जबकि पूंजीवाद में अंधाधुंध विकास को लक्ष्य माना जाता है ; जिसमें लाभ कमाने व पूंजी निर्माण पर जोर दिया जाता है; और जिसका सबसे ज्यादा लाभ पूंजीपतियों तथा समाज के उच्च वर्ग को तो मिलता है। परन्तु इस लाभ कमाने की प्रक्रिया में पर्यावरण और श्रमिक वर्ग या गरीब तबके को इससे होने वाले नुकसान या दुष्प्रभाव को झेलना पड़ता है। 'भोपाल गैस कांड' इसका एक उदाहरण है।

आज अनवीकरणीय खनिज व ऊर्जा संसाधन के ख़त्म हो जाने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियों का अस्तित्व संकटग्रस्त दिखाई पड़ता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ भी आज सतत विकास की बात करता है, और इसके लिए 17 बिंदुओं वाले 'सतत विकास लक्ष्यों'(एस. डी. जी.) को निर्धारित किया है जिन्हें सभी राष्ट्रों को 2030 तक पूरा करना है।

सतत विकास, वास्तव में एक ऐसा विकास है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिए भी संसाधनों को सम्हाल रखने की बात करता है। गांधी जी भी ऐसे ही विकास का मॉडल के हिमायती थे।

आज जब दुनिया के सभी देश हर साल 'जलवायु परिवर्तन' या यूँ कहें 'जलवायु संकट' पर अलग-अलग जगहों पर हर वर्ष आपस में चर्चा करते हैं, किंतु किसी भी देश में नैतिक जिम्मेदारी दिखाने की हिम्मत नहीं होती कि वे अपने कार्बन उत्सर्जन को दमदारी के साथ कम सके।

 गांधीवादी विचार धारा में नैतिकता की अपनी खास जगह है। नैतिकता वह गुण है जो आपको स्वार्थी होने व पथ भ्रष्ट होने से बचाती है। नैतिकता विहीन समाज की वजह से आज समाज में भ्रष्टाचार, दुराचार, कदाचार की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे समाज पतन की ओर अग्रसर हो रहा है। 

आए दिन निर्भया कांड की पुनरावृत्ति होती रहती है। वर्तमान में हाथरस की घटना ने हमें निर्भया कांड की याद फिर से दिला दी है। यू.एन. विमेन की रिपोर्ट को माने तो विश्व भर में तकरीबन 35 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन काल में शारिरिक या यौन शोषण का शिकार होती है। वहीं भारत में हर सोलह मिनट में एक महिला रेप का शिकार हो जाती है; और हर घण्टे में एक महिला दहेज उत्पीड़न से मौत का शिकार हो जाती है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन. सी. आर. बी.) के अनुसार।

आए दिन देश में धर्म के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकी जाती हैं। आजकल धर्म का प्रयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, किंतु गांधी जी धर्म का उपयोग राजनीति को शुद्ध व निष्कपट बनाने के लिए करना चाहते थे। नैतिकता विहीन राजनीति ने समाज में अनेकों बुराइयों को जन्म दिया है। यही वजह है कि हमारे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ़ अनेकों आपराधिक मामले लंबित हैं। ए. डी. आर (असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म) की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान लोकसभा (2019) के 540 सदस्यों में से 234  सदस्यों के खिलाफ़ आपराधिक मामलें दर्ज हैं वहीं 159 के अनुसार गम्भीर किस्म के आपराधिक मामलें लम्बित हैं।  कारण सिर्फ एक यह है कि ये गांधीवाद को नहीं मानते हैं,  हालांकि खादी के कपड़े जरूर पहनते हैं।

आज देश व दुनिया में अमीरी गरीबी के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं व गरीब और गरीब। 'ऑक्सफैम रिपोर्ट 2020' के अनुसार, विश्व के 2153 अरबपतियों की पूंजी विश्व के 60 प्रतिशत आबादी (4.6 अरब लोग) की सकल पूंजी से ज्यादा है। वहीं भारत में भी ये असमानता कहीं ज्यादा प्रतीत होती है।  'टाइम टू केयर' नाम से प्रकाशित इसी रिपोर्ट में भारत के 1 प्रतिशत सबसे अमीर पूंजीपतियों की सम्पति, भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या (95.3 करोड़ लोग) की सकल सम्पति से चार गुना ज्यादा है।

संसार भर में बढ़ती इस आर्थिक विषमता का मुख्य कारण पूंजीवादी विचारधारा से प्रेरित विकास का मॉडल है। जबकि गांधीवादी मॉडल में अमीरों को सम्पति के ट्रस्टी के रूप में माना गया है, जिसके अंतर्गत उन्हें अपनी सम्पति को गरीबों के कल्याण में लगाने की बात कही गई है। 

अभी कुछ दिन पहले तक अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में नस्लीय भेदभाव की खबर सुनाई दे रही थी। जो 21वीं सदी में भी लोगों के मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है। भारत में भी हालांकि अस्पृश्यता अब संवैधानिक रूप से प्रतिबंधित है; किंतु समय-समय पर दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों व महिलाओं पर अत्याचार की खबरें आती रहती हैं, जिससे 21 वी सदी में समाज की सोच पर सवाल जरूर उठता है। जबकि गांधीवाद नस्लीय भेदभाव सहित सभी प्रकार के  ऊंच-नीच को उचित नही मानता है। इसीलिए स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व को बढ़ाने वाले  प्रावधान संविधान में किये गये हैं।

अपने-अपने देश से नस्लीय भेदभाव या रंग भेद को खत्म करने में नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका) व मार्टिन लूथर किंग जूनियर (अमेरिका) ने गांधीवादी नीतियों का ही अनुसरण किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि आज रंगभेद की नीति समाप्त हो चुकी है। आंग सांग सू की ने गांधीवादी तरीके से म्यांमार को सैनिक तानाशाही से आजाद कराया था और वहाँ लोकतंत्र की बहाली में अपना योगदान दिया था । इन तीनों नायकों ने गांधीवादी तरीके से काम किया और इन तीनों को इसके लिए नोबेल पुरस्कार भी हासिल हुए। इस प्रकार गांधीवाद से विश्व के अनेक भागों में समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व की स्थापना में मदद मिली है।

वर्तमान में भारत की तरफ़ से बौद्ध धर्म के बाद, गाँधी ने ही विश्व को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। मजेदार बात यह है कि दोनों, बौद्ध धर्म व गाँधी ने दुनिया में शांति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण पूर्ण भूमिका निभाई हैं। भारत भी इन्हीं के बताए मार्ग पर चल रहा है। भारत यू.एन. के शांति अभियानों के लिए हमेशा से अपने जाबांज़ सैनिक भेजते रहे है।

आतंकवाद एक ऐसा मुद्दा है जो धार्मिक संकीर्णता से प्रेरित है तथा हिंसा को बढ़ावा देता है। गांधीवादी तरीके से इसे निपटा जा सकता है। गांधीवाद में धार्मिक सहिष्णुता की बात की जाती है अर्थात गांधीवादी व्यक्ति धर्म आधारित भेदभाव करेगा ही नहीं तो धार्मिक कट्टरता या धर्मान्धता कहाँ से आएगी।

जहां तक भारत में हिन्दू- मुस्लिम वैमनस्यता की बात है, तो यह गाहे- बगाहे उभर कर आते रहते है जिससे हमें सावधान रहने की जरूरत है। यह खासकर चुनावों के समय अचानक सतह पर आ जाते है और फिर चुनावों के बाद गायब हो जाते है। दिलचस्प बात यह कि आजकल राज्यों के चुनाव भी इससे प्रभावित होने लगा है। चूंकि हमारे देश में साल में कम से कम दो या तीन राज्यों के चुनाव प्रति वर्ष होते हैं, जिससे यह धार्मिक कट्टरता या साम्प्रदायिकता हर वर्ष कमोवेश कुछ समय के लिए जरूर दिखाई देता है। 1984 का 'सिक्ख विरोधी दंगा', 2002 का 'गोधरा कांड' धार्मिक वैमनस्यता के कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो हमें दुनिया की नजरों में शर्मसार करते हैं। साथ ही साथ ये देश की एकता व अखंडता के लिए खतरा पैदा करते हैं।।

गांधी जी इस खतरे को अच्छी तरह से समझते थे इसीलिए  वह जीवन भर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए लड़ते रहे; और अंततः उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी भी पड़ी। जब देश स्वतंत्रता का जश्न मना रहा था तो गांधी जी हिंसा पीड़ित क्षेत्र नोआखली (वर्तमान में बांग्लादेश में एक जगह) में अनशन कर, साम्प्रदायिक हिंसा से उठती लपटों को शांत कर रहे थे।

गांधी जी सत्य के साधक थे । उन्होंने अपने सत्याग्रह के लिए सत्य व अहिंसा को ही साधन बनाया। और इन्हीं साधनों की बदौलत अंग्रेजों के खिलाफ़ आंदोलन चलाया। परिणाम स्वरूप अंग्रेजों को देश छोड़ना पड़ा।

स. रा. सं. द्वारा 2007 से गांधी जयंती को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस ' के रूप में मनाया जाना गांधी और उनके विचारों की प्रासंगिकता व लोकप्रियता का ही सूचक है।

आज बढ़ती समृद्धि के बावजूद लोगों द्वारा शांति की कमी महसूस की जा रही है, ऐसे में गांधीवाद लोगों को आध्यात्मिकता की तरफ ले जाने वाला एक अच्छा रास्ता हो सकता है। हममें से अधिकांश लोग वर्तमान से क्षुब्ध रहते हैं और हम अपने हिसाब से बदलाव लाना चाहते हैं किंतु हम तय नहीं कर पाते कि बदलाव क्या हो, तो इसके लिए गांधी यह का कथन मार्गदर्शक का काम करता है, "वही बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।"

इस प्रकार हम ये कह सकते हैं कि गांधीवाद 21वीं शताब्दी की, अगर सभी नहीं तो, अधिकांश समस्याओं का हल प्रस्तुत करता है। चाहे वह समस्या एक व्यक्ति, एक समाज, एक राष्ट्र, या पूरी दुनिया की ही क्यों न हों।

"मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है" गांधी का यह कथन हमें उनके जीवन की घटनाओं, उनके विचारों, जीवन दर्शन व उनकी उपलब्धियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।


                                                         दिलीप कुमार


Monday, 21 September 2020

ग़ज़ल

 समझदार होकर तुम क्यों सवाल करते हो,

बेवजह ,बेबुनियाद क्यों बवाल करते हो।


जैसे चलते आया है वैसे चलने दो,

हमें रोकने खड़ी क्यों दीवाल करते हो।


बोलने वालों का हश्र तुम्हें पता ही है, 

फिर भी बोलकर अपना क्यों काल करते हो।


तुम भी चुपचाप अपना काम करते रहिए, 

यूँ ही हमारे आगे क्यों गाल करते हो। 


हालात ठीक ठाक है बनिस्बत पहले के, 

इसे खराब करने का क्यों ख़्याल करते हो।                 


बोलना ठीक नहीं विरोध में जानते हो,

फिर बोलकर खून में क्यों उबाल करते हो,


सब मौन नतमस्तक हो सजदा कर रहें हैं, 

तो तुम पूछकर ऊँचा क्यों भाल करते हो।


                           -  दिलीप कुमार

Friday, 4 September 2020

चौपाई

 

                            । । चौपाई ।।


                                  वंदना

                                 ______


सुनो प्रभु तुम विनती हमारी । हाथ जोड़ करूँ जय तुम्हारी ।।

काम,क्रोध ,मद ,लोभ अपारा । दूर करो ये दोष हमारा ।।


मालिक तुम हम दास तुम्हारा । तुम करते सबका उद्धारा ।।

हमरो करहू तुम उद्धारा ।     सविनय है बस यही हमारा ।।


हम निर्बल हैं तुम बलवाना ।  तुमसे होत जगत कल्याना ।।

हमरो करहू तुम कल्याना ।   अर्ज एक है देहुँ तुम ध्याना ।।


हममें है सब दुर्गुण भारी ।   एक तुम्ही हो बस सदाचारी ।।

दूर करो सब दोष बिहारी ।।  अरदास ये तुमसे हमारी ।।


तुम दीप हो जगत अँधियारा ।  तुमसे जग में है उजियारा ।।

हमें भी तुम ज्योति दो साईं ।   सबकी तुमसे यही दुहाई ।।


तुम रहते प्रसन्न हर बारा ।   बाकी जगत सदा दुखियारा ।।

दूर करो सबकी बदहाली ।   यही मांग रहे  हम कपाली ।।


भक्ति भाव ना जाने कोई ।   पूजा पाठ न हमसे होई ।।

हमें सद्गुण तुम देहुँ कोई ।   अर्चना करें ये सब कोई ।।


क्षमा करो सब पाप हमारे ।  शरण में हैं अब हम तुम्हारे ।।

सदगति हमें दे धनुर्धारी ।   यह प्रार्थना है अब हमारी।।


                                   

                                                दिलीप कुमार


Sunday, 23 August 2020

ग़ज़ल

              हार के मारे

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बाहर सूरज है, चाँद है, तारे बहुत हैं,

पर भीतर में हमारे अँधियारे बहुत है।


कोई कोई ही नजर आता है सिकन्दर,

दरअसल जहाँ में हार के मारे बहुत हैं।


भला क्यों जाते हो दूर-दूर करने सैर,

देख तो जरा आसपास नजारें बहुत हैं।


मुसीबत में ही पता लगता है अपनों का,

ख़ैरियत में लगते अपने सारे बहुत हैं।


किसी किसी की चौखट में मिलती है इज़्ज़त,

हालांकि  खुले रखते सभी द्वारें बहुत हैं।



                       - दिलीप कुमार 


Friday, 21 August 2020

गज़ल

        गज़ल

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विचारों को उदार कर तू इसे न तंग कर,

आजाद कर ख़याल को तू इसे न बंद कर।


बड़ी रंगत है जग में  इसे यूँ रहने दो,

तू भी रंग इसमें भर इसे न बेरंग कर।


लगती भली दुनियाँ है प्यार और इश्क में,

सबसे प्यार तू भी कर बेवजह न जंग कर।


पड़ती यहाँ देनी बलि अमन की रक्षा में,

तू भी इसे अभेद रख  इसे यूँ न भंग कर।


गर शूल है दुनियाँ में तो साथ में गुल भी,

गठजोड़ कर गुल से तुम शूल से न संग कर। 

               

कारनामे करने में  लोग बड़े लीन हैं,

कमाल यहाँ तू भी कर फिर जग को दंग कर।


                          -  दिलीप कुमार

Friday, 24 July 2020

मुक्तक

                       मुक्तक
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गर राहों में काटें हो तो चलने में मजा आता है ।
गर नूर मिलता किसी को तो जलने में मजा आता है ।
गर किसी के पेट की भूख मिट जाती है दो रोटी से
तो ऐसी रोटी को ही तो तलने में मजा आता है ।

                                     दिलीप कुमार

Saturday, 20 June 2020

मुक्तक

                     मुक्तक
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जिसे तुम देश कहते हो उसे मैं  जान कहता हूँ ।
जिसे तुम धर्म कहते हो  उसे  ईमान कहता हूँ । 
वतन खातिर जिसकी तुम जीने का दम्भ भरते हो।
मैं उसकी खातिर अपनी निछावर जान करता हूँ ।

                                     दिलीप कुमार














मुक्तक



जीने की आग को सीने में जलने दो ।                    अरमानों को दिल में तुम्हारे पलने दो ।
पर ना बनो किसी की राह में बाधा तुम ,
जो जिधर चाहे चलना उन्हें चलने दो ।


                             दिलीप कुमार 

Tuesday, 19 May 2020

कविता - धू-धू कर जल रही धरा





धू-धू कर जल रही धरा


धू-धू कर जल रही धरा
उसमें झुलसते हम सभी,
ऐसी घड़ी हमने यहाँ                                                 
ना देखी ना सुनी कभी !

ऐसा लगता है वसुधा
हमसे अब तो रूठ गई,
रिश्तों की थी डोर यहाँ
लगता अब तो टूट गई !

ऐसा लगता भू माता
अब ना रही ममता मयी,
इसीलिए शायद न यहाँ
पहले वाली रही खुशी !

ऐसा लगता वसुंधरा
हमसे हो गई है दुखी,                                                  
इसीलिए सर्वत्र यहाँ
दुखों की वर्षा हो रही !

ऐसा लगे अब भू-धरा
अब तो हमको रुला रही,
और मानवता को यहाँ
पीड़ा देकर  डरा रही !

ऐसा लगे पृथ्वी यहाँ
जैसे आग बरसा रही,
जीना दूभर यहाँ हुआ
विपदा आती घड़ी घड़ी !

ऐसा लगे धरणी यहाँ
हमसे  बदला चुका रही,
हमारे कर्मों की सजा
हमको अब वो सुना रही !

हर तरफ छायी निराशा
जीने की अब आस नहीं,
आखिर हम सब रहें कहाँ
सुरक्षित न अब रही भूमि !

ऐसा लगे धरती यहाँ
मौत के शूल उगा रही,
जीवन में अब छाँव कहाँ
धूप में जलती जिंदगी !

आओ करें हम प्रार्थना
शीश नवाकर यहीं अभी,
हे धरती ! हे वसुंधरा !
क्षमा करो अब भूल सभी !

 करुणा करो , हे भू धरा !
हममें समझ बिल्कुल नहीं,
 हे भू माता ! करो क्षमा
तू  है बड़ी करुणामयी !

हे वसुधा ! तुम करो दया
यही है तुमसे बन्दगी,
गुस्सा छोड़ के , हे धरा !
खुशी से भर दे जिंदगी !

हे धरणी ! ममता बरसा
पहले जैसे ओर सभी,
और ना अब हमको सता
सहने की ना शक्ति  रही !

हे भू! हम करते वादा
हम न करेंगे भूल कभी,
हम रखेंगे ख्याल तेरा
शपथ उठाते आज यही !

 तुमने उड़ेली नित कृपा
आगे भी उम्मीद लगी,
देख हमारी दीन दशा
अब तो रहम कर, हे मही !


               दिलीप कुमार




























Monday, 4 May 2020

Poem - The Soldiers




                           The Soldiers
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Thank you , soldiers for the reverent role  you play .
Thank you , soldiers for the supreme service you pay .
Thank you , soldiers for the safe security layer you lay .

We take pride in the sacrifice that you  give away .
We revere the bravery with which you always  play .
We cherish the heroism and courage you display .

How hard life you face every night and every day .
Be it  blood freezing cold or scorching heat way ,
You fight with same vigour to keep the enemy at bay .

Whether it is man-made war or it is natural dismay .
Unparalleled discipline and dedication you  spill away
To keep us safe and sound in each and every way .

You forget everything which comes in your own way
Including your sick parents and wife in the family way .
You forsake the friends with whom you used to play .

Many success you got us in the time passed away .
Many more even in future will come again in our way .
We salute the spirit in you that never ever fades away .

Not only do you guard indian line but also  serve away .
Glory and guts you carry with you be it at home or away.
You never let us down, rather you give us the hope's ray.

Our rival is no match for you whom you  out play .
Being highly skilled and trained , die you never say     
We all miss when you are martyred fighting in the fray .

You keep us united,saving us from breaking away
You save our sovereignty from being stolen away .
Thus,you shield this great land,driving the foe away .

The patriotism, that  you show , we cannot betray .
The sacrifice , that you make , we can never repay .
In exchange of your service ,we can only pray and pray .

O soldiers ! You , keep playing the role the way you play .
O soldiers ! You , keep paying the service the you  pay
And let the tri-colour fly high and high near and away .

"Jay Hind "!🇮🇳 a little tribute by me🙏💐🙏
       
                                                    Dilip Kumar

Friday, 1 May 2020

दोहा - श्रम का कर संकल्प

            श्रम का कर संकल्प
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अगर तुमको जीत मिले , तो उड़ो न स्वच्छन्द।
कभी न करना हार से , प्रयास अपना बन्द ।

अगर तुमको  हार मिले, तो हो न तुम उदास ।
जीत होती तभी यहाँ , जब होत नित प्रयास ।

इच्छा कम ही राखिए , अगर पाना है सुख ।
अपूरित अरमानों से , मिले असहनीय दुख  ।

अगर सफलता चाहिए , श्रम का कर संकल्प ।
श्रम है  कुंजी एकमात्र , दूजा नहीं  विकल्प ।

लालच को न जीताना  , सन्तोष की दे बलि ।
जो लालच से जीतते  , वे ही असली बली ।

राही गर भटके मिले ,  व पूछत फिरे राह ।
मार्ग सही दिखाकर तुम ,  आशीष ले अथाह ।

गर शांति तुम्हें चाहिए , तो दर-दर ना भटक ।
शांति  तेरे  घट में  है , भला देख जा निकट । 

एक ही लक्ष्य रखने की , कभी न करना भूल ।
विकल्प गर साथ हो तो ,जरूर खिले जय-गुल       
               
अगर मन में  हो संशय  , व कर न सको निश्चय ।
अंतरमन सुन लीजिए   , अपने सभी  निर्णय ।

जो सुनते खुद की सदा  , हो न उन्हें अनुताप ।
जो  सुनते पर की सदा ,  होत उन्हें सन्ताप ।


                                      दिलीप कुमार


Thursday, 16 April 2020

The Divine Nature

   
                       The Divine Nature

The divine nature , we  all  praise enough
To be  restful ,  has  been  rendered rough .
The holy nature,one and all rate and judge
To be benign,has now turned terribly tough.

She is showing us her anguish and anger,
Dropping  us  into a deep ditch of danger.
She has  already  started  acting as rainer
And raining hard on us her ardent ember.

Thus , human  life  has turned into a hell .
Hence  we  are  getting  sick  and  unwell .
We, the human , have now started to yell
By  hearing  the  sound  of the  death bell .

The  nature  is  crying out loud and clear
That  we  all  can  easily  listen  and hear .
She  is  sheding  her  grave  grief  as  tear ,
Fast and  ferociously furthering  our fear.

Nothing   in  life  looks   in apple pie order .
Everything   seems  impure and improper .
Natural calamities  now  act  as  precursor
To the total down fall of the natural order .

We  are responsible for the  present  plight
Of the mother nature overtly and  outright .
We have made her so worse day  and night
That it has got bleak what used to be bright .

We have turned our nature ill and impure.
We all looted and exploited it  for our lure .
We have  made our  kind  nature  insecure
And pushed it into  the  diseases of no cure .

Let us come  and  be  together  one  and all
And care for the nature if we love  it at  all.
Let us hear and listen to  the   nature's  call
And discourage darling  nature's down fall .

Let us stop longing for luxurious  life  style.
Needless needs we needn't pile  or  compile.
Let us change developmental policy  profile
To the nature if joyous time we are to while.

Going back  to  nature for us is now a must.
We must go for basic needs not for our lust.
The sustainable development we've to trust
If we are to form our future joyful and  just.


                                                   Dilip Kumar


Thursday, 9 April 2020

दोहे - सत्कर्म कर हल पल


      सत्कर्म कर हर पल                                                      

कुसंगति में ना पड़िए , करिए तुम सत्संग ।
शांति मिले सत्संग से , कुसंग जनते जंग ।

शांत रखिए मन को तुम , अशांत न करिए मन ।
जन्मे क्रोध अशांति से , जो फुँके तन मन धन ।

सच के साथ सदा चलो , कठिन हो भले डगर ।
सत्य को छोड़ तुम यहाँ , ना देख इधर - उधर  ।

गर पग चले नित सत पथ , और सच बोले मुख ।
हस्त  करे सत्कर्म सब , तो मिले शास्वत सुख ।

जो मिला तुमको अब तक , वो तेरे कर्म फल ।
गर फल अच्छा चाहिए , सत्कर्म कर हर पल ।

बिना किसी कारण यहाँ , न होत कुछ भी काज ।
एक भोगे वन कर्म से  ,  तो  एक भोगे  राज ।

ज्यों रंग गिरगिट बदले  , वैसे बदले काल ।
समय करे निर्धन धनी  ,  व रंक मालामाल  ।

समय निकले जाय यहाँ  , जैसे कर से रेत ।
सचेत यहाँ समय करे  , चेत सके तो चेत ।

गुजरा समय न लौटता , इतना लो तुम मान ।
जो न गँवाता समय को , सफल उसी को जान ।

वही कर तुम नित्य यहाँ , कहे जो तेरा दिल ।
दिल की सदा सदा सुनो , कुछ भी कहे महफ़िल ।


                         ‌            दिलीप कुमार

Wednesday, 8 April 2020

दोहे - जीवन एक संग्राम


दोहे -  जीवन एक संग्राम
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जीवन एक संग्राम है, योद्धा हम सब लोग,
लड़ यहाँ जी जान से कि, याद रखे सब लोग।

जीवन एक परीक्षा है, या परीक्षा समान,
बचपन तो सरल लागे, जवानी कठिन जान।

मुँह मोड़ न मेहनत से, मेहनत में लग चल,                
कभी न कभी मिले यहाँ, मेहनत के शुभ फल।

काम जैसे पूजा है, तुम भी करो जी भर,
कर्म करके कर्मवीर, शोभते सिद्धि -शिखर।

धीरे धीरे चल यहाँ, दौड़ो  ना तुम तेज,
तेज धावक थकान से, गिरे भए निस्तेज।

ना तुम गलत सलाह दो, ना दो गलत उपाय,
जो ऐसा करते  यहाँ, कभी  न वो सुख  पाय।

तुमसे जितना हो सके, उतना कर सहयोग,
दूर हटे सहयोग से,  दीनता, दुख  व रोग।

कभी ना पाव थामिए, चलते रहो हर दम,
जीवन ज्योति जब न जले, थामिए तभी कदम।

जीवन एक चुनौती है, करो इसे स्वीकार,                   
हँस कर जी हर हाल में, जीत मिले या हार।

सदा सीखना चाहिए, सीखना श्रेष्ठ बात,
जो सदा सीखते यहाँ, मिले न उनको मात।

   
                                      दिलीप कुमार

Tuesday, 7 April 2020

गजल - क्या से क्या हो गया

               



     क्या से क्या हो गया
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क्या से क्या हो गया है मंज़र अपने शहर का।
बेखौफ का बसेरा घर हो गया आज डर का।

खिड़की दरवाजे कभी न हमें यूँ सुहाते थे।
पर आज ये बने है आसरा सबकी नजर का।

कल तलक थी चलती सरपट गाड़ी जिंदगी की।
पर थमा हुआ सा लगता पहिया आज सफर का।

शहर का शहर सन्नाटे से सन्न  हो गया है।
चुप्पी सुना रही है नगमा मौत के कहर का।

कल तलक नजर आते थे हम सब यहाँ सिकन्दर।
आज शिकस्त से लथपथ दिखते योद्धा समर का।

डूबती हुई नज़र आती कश्ती अब हमारी।
शायद पतवार है टूटा दोष न है लहर का।

डरा-डरा सा लगता आज हर कोई यहाँ है।                 
असल में यही तो असर है कुदरत के कहर का।

कितना अच्छा हो गर ये कहर हमें सीखा दे।
यहाँ नया तरीका जिंदगी की गुजर-बसर का।

                                      दिलीप कुमार







Wednesday, 1 April 2020

कविता- विकट घड़ी

  विकट घड़ी     
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 है विकट घड़ी
 सामने खड़ी,
 नजरें जिसकी
 मनुज पर पड़ी।

 इरादे अटल
 लगता अविचल,
 हर कोशिश अब
 हो रही विफल।

ज्ञान है लगा
व विज्ञान जगा,
चला तर्क भी
पर वह न भगा।

अचरज में सब
जपते सब रब,
रो रहे लोग
देख दिन अजब।

मचाता समय
अब यहाँ प्रलय,
बली से बली
खाता है भय।

दूर न भगता
डर है जगता,
दे रहे मौत
यम सा लगता।

मिलकर हो प्रण
अभी इसी क्षण,
बदलो कौशल
जितना यदि रण।

है बस एक हल
प्रकृति संग चल,
गर न देखना
समय अब विकल।

प्रकृृति के संग
न कर अब जंग,
आगे ना जा
चल संग- संग।

प्रकृति से प्यार
कर यहाँ यार,
गर अब करना
सुखी संसार !

           दिलीप कुमार

Sunday, 22 March 2020

Poem - The Tree

                                   The Tree
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Thank you,trees for standing steadfast ,solid and tall !
In the face of heat,cold,wind,frost, mist and rain fall .


For our life , your presence is paramount and above all .
Without you our existence is never ever  possible at all .


You have always been found to be very courteous and kind.
Thanks to you , our daily  needs and requirements we all find .


Incredibly invaluable has been your good green spread
That brings our empty and void belly butter and bread.


Your mild breeze brings us, the human, the life breath .
Your fruits, flowers and herbs hand us the right health .


Your availability causes the rain cloud to fall as rain drops.
You nullify soil erosions , resulting in good and bumper crops.


If you are there around us in a good and great number.
We can fulfill the dreams which we see in our slumber.


If you are there around us in a good and great health.
For our children,we can make a great deal of  wealth.


You have gotten us every thing that we all need .
Yet,more often than not we easily cut you  to bleed .


Too selfish we have been so far to cut you out of the lovely land.
Hence,we get to see the soil slowly switching to a stretch of sand .


Too careless we have been to provide you the proper protection .
Rightly so,we get to see a series of scenes of  steady spoliation.


Now climatic catastrophes continue every calendar year.
Tempest like tornado and typhoon turn up our fierce fear.


High heat hits new hight year after year to our surprise
That results in the rise in the sea level and  its wave size .


Cloud burst,cold wave,flash flood and fire in forest occur quite frequently.
If we didn't act timely now,we could see the end of the planet permanently


Despite dark,dire and devastating deeds of destructible nature,
Our leaders don't seem to be serious to take the corrective measure .


Hence inhaling air is proving to be improper and impair.
And we see many deaths and diseases out of toxic air .


Similarly we are forced to drink the water that is impure.
Consumption of polluted water make us ill and insecure .


We see many diseases and disabilities all over the place .
Imbalanced nature puts in peril the entire human race .


Given the coming future insecure and uncertain on the earth.
We need to change our attitude to nature to live again with mirth .


So let us all take our solemn swear to save the saintly  tree.
Only then could we form the following future fine and fear-free.


                                                Dilip kumar
   

Tuesday, 17 March 2020

Poem - The Dawn

                             The Dawn
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      The atmosphere turns so cute and cool
      As the sun rises in the morning slowly.
      The health-conscious use this as a tool
      To stay fit and wait for it quite eagerly.

     The weather become so lovely and light
      As and when the gentle breeze goes by .
      The blue sky offers us superlative sight
      When the flock of birds go outside to fly

      The climatic condition is on cloud nine
       As and when the day starts breaking up .
       The ambiance becomes fascinating fine
       As the band of birds begin chirping up .

     The early air is so nice and nourishing
     As and when we go for a morning walk .
     The dawn is too refined and refreshing
     To revive and restart a deadlocked talk.

      So let us all make it our healthy habit
      To wake up daily earlier than the sun.
      And let us all play a game as the rabbit
      In the magnificent morning to have fun.


                                               Dilip Kumar
                                 
       


Sunday, 15 March 2020

दोहा - कोरोना का रोना

                 दोहा- कोरोना का रोना 
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      कोरोना के कहर से , जगत हुए गमगीन ।
      दुनिया भर में फैलता , मूल देश है चीन। (1)

     क्या अमेरिका, क्या स्पेन, सबका खस्ता हाल ।
    किसी को ना हल सुझता , लगे विचित्र सवाल । (2) 

     मन्द अब बाजार पड़ा , ये कोविड की मार ।
     कोर-कसर न अब छोड़े , बचाव में सरकार । (3)

      अब तक ना बना टीका , पर जारी है खोज ।
      मुँह खोल सुरसा जैसे , लील रहे ये लोग । (4)

      कोरोना एक वायरस , फैले आग समान ।
      सिरदर्द, बुखार, खासी , इसके लक्षण जान  । (5)

       सिरदर्द या खाँसी हो , दौड़ तुम अस्पताल ।
       देर कहीं न बन जाए , तुम्हार काल अकाल । (6)

        सावधानी ही बचाव , मन्त्र इसे एक जान ।
        बार-बार हाथ धो ओ , अगर बचानी जान (7)

       मुँह में वस्त्र धारण कर , घर से बाहर निकल ।
       मुँह पट बदल बार-बार ,कर कोरोना विफल ।(8)

       दूरी बनाकर रखिए , परम-प्रिय क्यों न होय ।
      न हाथ मिला, न लग गले , सलाम मुँह से होय।(9)

      भीड़-भाड़ से दूर हट , घर में समय निकाल ।
      अगर जरूरी न हो तो , यात्रा दो तुम टाल । (10)

                                               दिलीप कुमार
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Saturday, 14 March 2020

कविता- जीना कितना मुश्किल यहाँ

                जीना कितना मुश्किल यहाँ
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               जीना कितना मुश्किल यहाँ ,
                मरना कितना आसान ।
                पग-पग पर मौत का पहरा ,
                बच कर चल मेरी जान ।

                हवा बड़ी जहरीली यहाँ ,
                हो गई है विष समान ।
                जीने न देती हवा यहाँ ,
                हर लेती सबके प्राण ।

               पानी भी न अब शुद्ध यहाँ ,
               ये भी करते नुकसान ।
               पानी से ना बुझती क्षुधा ,
               बुझ जाते इससे प्राण ,

                आबोहवा में रोग यहाँ ,
                जाती इससे अब जान ।
                जाएँ तो अब जाएँ कहाँ ,
                सुरक्षित ना कोई स्थान ।

                बंजर होती जमीन यहाँ ,
                भूजल का घटता मान ।
                गर्मी अब सुखाती नदियाँ ,
                मगर  बारिश दे  उफान।

                बढ़ते ताप से क्षुब्ध धरा ,
                है बर्फ भी हलाकान ।
                समुद्र का जल बढ़ता यहाँ ,
                है जग यहाँ परेशान ।

                जीव-जंतु अब घटते यहाँ ,
                जंगल होते वीरान ।
                पेड़-झाड़ अब कटते यहाँ ,
                वनभूमि हुए शमशान ।

                अनियमित अब होती वर्षा ,
                व नियमित हुए तूफान ।
                भीषण पड़ती गरमी यहाँ ,
                ठंड रचती कीर्तिमान ।

                 सुविधा-भोगी मनुष्य यहाँ ,
                 पूरे करते अरमान ।
                 नाराज़ होकर प्रकृति यहाँ ,
                 होती अब  बेईमान ।
         
                               दिलीप कुमार 

Friday, 13 March 2020

दोहे - जीवन के दोहे

                     
.                         ।। दोहे ।।
                   
चार पहर का दिन भए ,चार पहर की रात ।
काम हेतु दिन नियत है , विश्राम खातिर रात । (1)

सच-झूठ के रण में नित , दो तुम सच का साथ ।
जो सच का थामे हाथ ,  हरि भी उनके साथ । (2)

न कभी भी आवेश में , लीजिए तुम निर्णय ।
क्रोध को अग्नि मानिए ,जलत इसमें परिणय । (3)

खाली बैठे न रहिये , करिये कुछ भी काम ।
जो खाली समय काटे , वो होवत बदनाम । (4)

काम न होत दीर्घ-लघु ,सब काम एक समान ।
जो काम में भेद करत , न होवत वो महान । (5)

जो करत मेहनत सदा ,न होवे वो गरीब ।
जो श्रम से जी चुराये , फुटत उनके नसीब । (6)

घूमे समय का पहिया ,अनवरत एक समान ।
तुम भी सीखो समय से ,रहना नित गतिमान । (7)

समय सदा गतिशील है , समय ना एक समान ।
जब समय करवट लेवे , भक्त हुए भगवान । (8)

मित्र मानिये किताब को , कभी न छोड़े साथ ।
गुरू जैसे किताब है , दिखावत मुक्ति - पाथ । (9)

समय न अपना खोइए , समय हीरा समान ।
जो समय को खोवत है , घटती उनकी शान । (10)

                                      दिलीप कुमार


Two Ideas

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